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    नीमच का इतिहास

    नीमच का इतिहास- नीमच भारत के मध्य प्रदेश राज्य के मालवा क्षेत्र का एक शहर है। यह जिला राजस्थान राज्य के साथ अपनी पूर्वोत्तर सीमा साझा करता है और नीमच जिले का प्रशासनिक मुख्यालय भी है। पूर्व में 1822 में यह ग्वालियर रियासत की एक बड़ी ब्रिटिश छावनी, जो 1895 में संयुक्त राजपुताना-मालवा राजनीतिक एजेंसी और मालवा एजेंसी का मुख्यालय बन गया था। ब्रिटिश कैंटोनमेंट को 1932 में भंग कर दिया गया था, जिसके बाद इसे इसे ब्रिटिश म्यूनिसिपल बोर्ड द्वारा बनाए रखा गया था। यह शहर अजमेर जिले का एक महल था। मूल रूप से मालवा के क्षेत्र का एक हिस्सा, 1768 में मेवाड़ के राणा (राजा) द्वारा किए गए ऋण का भुगतान करने के लिए राणा को दिया गया था। इसके बाद यह 1794 और 1844 और 1865 में छोटी अवधि को छोड़कर ग्वालियर रियासत का ब्रिटिश छावनी बन गया। नीमच छावनी ने 1857 के भारतीय विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और मालवा में अशांति का बड़ा केंद्र था। 1857 में, नीमच सबसे अधिक प्राचीन स्थान था, जहां विद्रोह का विस्तार हुआ था। नीमच में देशी बंगाल के सैनिकों की एक टुकड़ी तैनात की गई, फिर दिल्ली के लिए विद्रोह और मार्च किया गया। मालवा क्षेत्र को बल द्वारा राहत मिलने तक यूरोपीय लोगों ने शहर का बचाव किया। 1895 से मालवा में नीमच ब्रिटिश सेंट्रल इंडिया एजेंसी के एक राजनीतिक एजेंट का मुख्यालय रहा है।

    अर्थव्यवस्था¬- नीमच को कृषि उपज मंडी के लिए जाना जाता है। यह यहाँ के निवासियों की आजीविका का मुख्य स्त्रोत है और एक अन्य आकर्षण केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (केरिपुब) भी है। सन 1939 में नीमच में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (केरिपुब) का जन्म हुआ था और संगठन के लिए बड़े पैमाने पर सेना में भर्ती केंद्र है। केरिपुब अभी भी नीमच के ब्रिटिश सैन्य छावनी का हिस्सा है, जो भारत में अपनी तरह का पहला केंद्र था। नीमच को भारत की नेत्र नगरी के रूप में जाना जाता है क्योंकि यहाँ प्रति व्यक्ति नेत्र दान की दर सर्वाधिक है। एशिया का सबसे बड़ा शासकीय अफीम एवं क्षारोद कारखाना नीमच में ही स्थित है जिसका नाम -“ओपियम और अल्कलॉइड वर्क्स” है । यह कृषि उत्पादों के वितरण का प्रमुख स्थान है। हथकरघा बुनाई यहाँ का प्रमुख उद्योग है। नीमच की स्थानीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि उपज मंडी पर आधारित है। नीमच जिला देश में अफीम के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। भारत के केवल दो अफीम कारखानों में से नीमच एक है। नीमच जिले की जलवायु अफीम के उत्पादन के लिए उपयुक्त है और इस प्रकार अफीम का व्यापार इस क्षेत्र में प्रमुख खेती वाली फसलों में से एक है। अन्य प्रमुख कृषि उत्पाद संतरे, नींबू, लाल और गुलाबी गुलाब और कई जड़ी-बूटियां हैं।

    नीमच का प्रमुख आकर्षण- 1. नीमच स्टेशन, रतलाम चित्तौड़गढ़ मीटर गेज रेलखण्ड सन् 1880 में निर्मित। 2. 16 जून 2007 को आमान परिवर्तन कर ब्राडगेज में परिवर्तित हुआ। 3.केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की जन्मस्थली – स्थापना 01 अगस्त 1968
    समीपस्थ पर्यटन स्थल एवं दूरी 1.भादवामाता मंदिर 22 कि.मी. 2.के.रि.पु.बल 1.1 कि.मी. 3. किलेश्वर महादेव मंदिर 1 कि.मी. 4. मोरवन डेम 38 कि.मी. 5.गांधी सागर डेम 97 कि.मी.

    जिला न्यायालय नीमच के संबंध में जानकारी-
    01. मध्यप्रदेश राज्य व मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की स्थापना के बाद म.प्र. शासन द्वारा गठित जस्टिस दुबे आयोग सिफारिशों से राजस्व जिला ‘‘नीमच‘‘ वर्ष 1996 में गठन होने के पश्चात न्यायिक जिला दिनांक 30.03.2002 को अस्तित्व में आया।
    02. वर्ष 1957 के पूर्व नीमच रतलाम न्यायिक जिला का तहसील न्यायालय था। उस समय रतलाम के तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश माह में 15 दिन केंप पर नीमच आते थे। उस समय नीमच शहर जो कि वर्तमान में नीमचसिटी के नाम से जाना जाता है, के कोर्ट मोहल्ला स्थित पुरानी तहसील प्रांगण में ही सिविल जज वर्ग-1 तथा सिविल जज वर्ग-2 के न्यायालय थे। उस समय व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-1 नीमच को जावद व मनासा के लघुवाद अपील सुनने का विशेषाधिकार दिया गया था।
    03. नीमच न्यायालय की बिल्डिंग पूर्व में ग्वालियर रियासत के द्वारा निर्मित कराई गई थी जो नीमच सिटी में स्थित थी। वर्तमान नीमच न्यायालय की बिल्डिंग का कार्य 1955-56 में प्रारंभ हुआ एवं वर्तमान बिल्डिंग 1958 में बनकर तैयार हुई। नीमच न्यायालय वर्ष 1957 के पूर्व रतलाम न्यायिक जिले के अधीन आने वाला न्यायालय था। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश क्रं 1498/19-154/98 दिनांक 06.04.2002 के द्वारा नीमच जिला न्यायालय स्थापित किया गया। वर्तमान में 20 न्यायालय कक्ष हेतु नवीन न्यायालय भवनका निर्माण महू-नसीराबाद रोड, जिला पंचायत के समीप हो रहा है, जो निर्माण समाप्ति की ओर अग्रसर है।
    04. नीमच जिला न्यायालय के गठन के उपरांत श्री एच.के. दुबे प्रथम कार्यवाहक जिला एवं सत्र न्यायाधीश माननीय उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त किये गये। वर्तमान में श्री सुशांत जी हुद्दार, प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश पदस्थ हैं तथा मुख्यालय नीमच पर 01 विशेष न्यायाधीश-एट्रो., 02 जिला न्यायाधीश, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, 2 व्यवहार न्यायाधीश वरिष्ठ खण्ड एवं 2 व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खण्ड के न्यायालय कार्यरत है तथा 02 प्रशिक्षु न्यायाधीश भी प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

    नीमच न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय- नीमच स्थित व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-1 का सबसे प्राचीन निर्णय 19.01.51 को प्रकरण क्रं 120/1950 में पारित किया गया था। उक्त व्यवहार वाद घोषणा एवं निषेधाज्ञा हेतु प्रस्तुत किया गया था। तत्कालीन व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-1 ने वादपत्र को प्रमाणित पाते हुये बांके छावनी नीमच स्थित मकान नंबर 827 बी के संबंध में वादी के पक्ष में स्वत्व की घोषणा की एवं प्रतिवादी के विरूद्व इस आशय की स्थायी निषेधाज्ञा प्रदान की, कि प्रतिवादी वादी के आधिपत्य में हस्तक्षेप न करे। उक्त निर्णय माननीय उच्च न्यायालय द्वारा बरकरार रखा गया। उक्त वादपत्र के अवलोकन से यह दर्शित हुआ कि प्राचीन समय में ग्वालियर स्टेट के स्टाम्पस प्रचलन में थे।

    सिविल न्यायालय जावद- 01. तहसील मुख्यालय जावद में स्वतंत्रता के पूर्व ग्वालियर स्टेट के समय से ही न्यायालय स्थापित है। जावद न्यायालय भवन का निर्माण वर्ष 1936 में किया गया। जावद में तहसील भवन व न्यायालय भवन का संयुक्त रूप से निर्माण किया गया। पूर्व में जावद में केवल एक न्यायाधीश सिविल जज वर्ग-2 पदस्थ रहे थे। वर्तमान में जावद न्यायालय में 02 जिला न्यायाधीश, 02 व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खण्ड कार्यरत् है।

    सिविल न्यायालय मनासा- 01. म.प्र. में नीमच जिले का एक पुराना शहर मनासा है। नीमच की तहसील मनासा में 1944 के पूर्व न्यायालय तहसील भवन में लगता था। उक्त तहसील भवन का निर्माण वर्ष 1906 में हुआ था। वर्तमान में जिस भवन में मनासा का न्यायालय लगता है उस भवन का निर्माण 1944 में हुआ था। मनासा शहर में लगभग 27 वर्ष पूर्व अपर जिला न्यायालय की लिंक कोर्ट के रूप में स्थापना हुई जिसे बाद में स्थायी कर दिया गया। वर्तमान में मनासा न्यायालय में 01 जिला न्यायाधीश के अतिरिक्त 03 व्यवहार न्यायाधीश कनिष्ठ खण्ड के न्यायालय कार्यरत् है। मनासा शहर मंदिरों की नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां बद्री विशाल का बडा मंदिर स्थित है।
    मनासा न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय अपने ही परिवार के 6 सदस्यों की हत्या के मामले में आरोपी जगदीश को धारा 302 भादवि में मृत्युदंड का दंडादेश मनासा स्थित अपर सत्र न्यायालय द्वारा दिया गया था। प्रकरण में आरोपी पर यह आरोप था कि उसने उसकी पत्नी अमरीबाई तथा क्रमशः 16 वर्ष 12 वर्ष, 8 वर्ष तथा 6 वर्ष की आयु की पुत्रियों कारूबाई, विद्याबाई, राजुबाई तथा रचना एवं एक वर्ष के पुत्र दिलखुश की चाकू से हत्या कर दी थी। अपर सत्र न्यायाधीश द्वारा आरोपी जगदीश को मृत्युदंड का दंडादेश प्रदान किया गया जो माननीय उच्च न्यायालय तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जगदीश वि. म.प्र. राज्य 2010 (1) जेएलजे 135 में बरकरार रखा गया।